उत्तराखंड के राजकीय महाविद्यालय में तैनात लगभग 200 अतिथि प्राध्यापक सरकार की अनदेखी के शिकार-उक्रांद
*******************
उत्तराखंड क्रांति दल का केन्द्रीय प्रवक्ता विजय बौडाई ने मीडिया को जारी एक बयान में कहा कि उत्तराखण्ड राज्य में विभिन्न राजकीय महाविद्यालयों में वर्ष 2017 से अपनी सेवाएं देते आ रहे अतिथि प्राध्यापकों के लिए वर्तमान के कठिन दौर में दो वक्त की रोटी जुटा पाना भी मुश्किल हो गया है। विदित हो कि नवंबर 2017 में तत्कालीन सरकार द्वारा राज्य के विभिन्न राजकीय महाविद्यालयों में अतिथि प्राध्यापकों को तैनाती प्रदान की गई थी। जिन्हें विगत वर्ष अगस्त 2019 से धीरे धीरे कभी स्थाई प्राध्यापकों के स्थानांतरण तथा कभी आयोग से चयनित प्राध्यापकों को नियुक्ति प्रदान कर बाहर का रास्ता दिखाया जा रहा है। जबकि वर्ष 2008, 2010 में नियुक्त किए गए नितांत अस्थाई प्रोफेसरों को नयमित नियुक्ति प्रदान की जा चुकी है। इसके अतिरिक्त वर्ष 2014 और 2015 में नियुक्त किए गए अस्थाई प्रोफेसरों को भी नियमित किए जाने की प्रक्रिया शासन स्तर पर गतिमान है।
बौडाई ने कहा कि बीते माह अप्रैल 2021 में राज्य सरकार द्वारा अस्थाई प्राध्यापक 2017 को पुनः 11 माह का सेवा विस्तार प्रदान किया गया किंतु उसके पश्चात भी उन्हें जून 2021 में तैनाती प्रदान की गई और उसके कुछ ही दिन बाद लोक सेवा आयोग से 25% अतिरिक्त सीटों पर चयनित अभ्यर्थियों की सूची जारी की गई। ऐसे में समस्त नितांत अस्थाई प्राध्यापक 2017 स्वयं को ठगा सा महसूस कर रहे हैं। उच्च शिक्षा विभाग द्वारा पूर्व में परीक्षा कराई गई थी और उसके बाद चयनित अभ्यर्थियों को 2018 में नियुक्ति प्रदान कर दी गयी थी लेकिन चार साल बाद पूर्व में परीक्षा दिए हए व्यक्तियों को नौकरी दे दी गई ।जबकि तब से अब तक कई युवा नौकरी पाने के योग्य हैं। कई युवाओं को परीक्षा देने का अवसर मिलता लेकिन सरकार ने पुरानी लिस्ट में से लोगो को भर्ती कर दिया जो कि पूर्ण तया विधि विरुद्ध तथा नये वेरोजगार युवाओं के साथ घोर अन्याय किया है। 25 प्रतिशत पुराने लोगो को नौकरी देने के कारण जो लोग काफी समय से संविदा में कार्य कर रहे शिक्षक हैं, उनके साथ भी सरकार घोर अन्याय कर रही है।सरकार द्वारा युवाओं के भविष्य के साथ इस प्रकार का खिलवाड़ करना सभी प्राध्यापकों के लिए एक बहुत बड़ा आघात है। शिक्षकों द्वारा अपने सुनहरे भविष्य की उम्मीद को लेकर वर्ष 2017 से राज्य सरकार को अपनी सेवाएं दी जा रही थी। किंतु कुछ प्राध्यापकों में से कुछ प्राध्यापक लगभग 1 वर्ष से अधिक अवधि से सेवाओं से बाहर हैं तथा अपनी रोजी-रोटी की तलाश में भटक रहे हैं। कोरोना जैसी भयंकर महामारी के दौर में भी राज्य सरकार द्वारा ऐसा अनापेक्षित व्यवहार निश्चित ही इन सभी के लिए एक बहुत बड़ा मानसिक आघात है। यदि राज्य सरकार द्वारा इन समस्त प्राध्यापकों को पुनः सेवा में नहीं लिया जाता है और इन्हें समायोजित करने हेतु कोई नीति तैयार नहीं की जाती है तो उत्तराखंड क्रांति दल इन शिक्षकों की लड़ाई लड़ेगा तथा इन समस्त प्राध्यापकों को न्याय दिलाने के लिये संघर्ष करेगा।
दल सरकार से मांग करता है कि शीघ्र इन शिक्षकों को उनके स्थान पर नौकरी पर रखे तथा उनके स्थान पर नई नियुक्ति न करे अन्यथा उक्रांद इनके साथ होने वाले अन्याय के खिलाफ आंदोलन करेगा।